किसी भी व्यक्ति की कुंडली जब सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य आ जाते हैं तो काल सर्प
योग का सृजन होता है , बहुत से विद्वान इसे नहीं मानते और तर्क यह देते हैं कि यह होता ही नहीं है , परन्तु पाप
कर्तरी योग की चर्चा हर जगह है अर्थात जब भी कोई घर दो पाप ग्रहों के प्रभाव में आ जाये तो यह योग बनता है , इस बात
से यह बात तो अवश्य सिद्ध होती है कि जब कोई एक शुभ ग्रह या स्थान दो पाप ग्रहों के प्रभाव में आये तो उसका परिणाम
अच्छा नहीं होता तो जब सभी ग्रह राहु -केतु के प्रभाव में आ जाएं तो अशुभ प्रभाव क्यों नहीं पड़ेगा ? और यह पड़ता है।
अतः यदि आपकी कुंडली में यदि काल सर्प योग बन रहा है तो इसका निवारण अवश्य कराएं ,
विशेष कर यदि यह लग्न , द्वितीय , चतुर्थ , पंचम से बन रहा हो तो यह अधिक कष्टकारी हो जाता है , और ऐसे में जब भी
राहु – केतु की दशा – अंतर दशा आती है या गोचर में राहु – केतु पुनः उसी स्थान पर आते हैं तो यह बहुत हानि पहुँचाने
वाला हो जाता है। काल सर्प दोष के कारण जातक को जीवन में अनेक कठनाई का सामना करना पड़ सकता है. जीवन के हर मोड़ पर
किसी न किसी तरह का अभाव रहता है. सफलता प्राप्त करने में कठिनाई और समय दोनों ही लगता है. इसके परिणाम अचानक
दुर्घटना और संपत्ति विनाश कर देने वाले होते हैं.
काल सर्प दोष के नकारात्मक परिणामों से बचने के लिए वैदिक काल सर्प दोष शांति अनुष्ठान
ही एकमात्र उपचार है. वैदिक काल सर्प दोष शांति अनुष्ठान में शुभ महूर्त, दिशा, हवन समिधा का विशेष ध्यान दिया जाता
है ताकि काल सर्प दोष के नकारात्मक प्रभावों को अधिक से अधिक घटाया जा सके.
इससे पीड़ित लोगों के लिए काल सर्प दोष की शांति आवश्यक होती है और उसके बाद भी समय –
समय पर “रुद्राभिषेक” तथा भगवान शिव की आराधना करते रहनी चाहिए।
वैदिक काल सर्प शांति अनुष्ठान
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राहु और केतु मन्त्रों का जप, रुद्राभिषेक, नाग पूजन, स्तुति एवम यज्ञ |
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