हिन्दू धर्म में पूजा करने के अनेक तरीके बताए गए हैं। इसमें पूरे विधि-विधान से पूजा करने से लेकर उपवास रख कर भी ईश्वर को प्रसन्न करने जैसी रीति बताई गई है। लेकिन इसके अतिरिक्ति भगवान को प्रसन्न करने व सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए परिक्रमा भी की जाती है। परिक्रमा या संस्कृत में प्रदक्षिणा, प्रभु की उपासना करने के लिए की जाती है। अकसर लोग मंदिरों, मस्जिदों तथा गुरुद्वारों में एक विशेष स्थल जहां भगवान की मूरत या फिर कोई पूज्य वस्तु रखी जाती है, उस स्थान के आस-पास चक्राकार दिशा में परिक्रमा करते हैं। महत्वपूर्ण वैदिक ग्रंथ ऋग्वेद से हमें प्रदक्षिणा के बारे में भी जानकारी मिलती है।
मान्यता है कि परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में ही की जाती है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के आधार पर ईश्वर हमेशा मध्य में उपस्थित होते हैं। यह स्थान प्रभु के केंद्रित रहने का अनुभव प्रदान करता है। यह बीच का स्थान हमेशा एक ही रहता है और यदि हम इसी स्थान से गोलाकार दिशा में चलें तो हमारा और भगवान के बीच का अंतर एक ही रहता है। माना जाता है कि मंदिर में दर्शन करने के बाद परिक्रमा करने से शरीर में पॉजीटिव एनर्जी आती है और मन को शांति मिलती है। इसके साथ यह भी मान्यता है कि नंगे पांव परिक्रमा करने से अधिक सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार जब गणेश और कार्तिक के बीच पृथ्वी का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा चल रही थी तब गणेश जी ने अपनी चतुराई से पिता शिव और माता पार्वती के तीन चक्कर लगाए थे। जिस कारण से लोग संसार के निर्माता के चक्कर लगाते हैं। उनके अनुसार ऐसा करने से धन-समृद्धि होती हैं और जीवन में खुशियां बनी रहती हैं।
कहा जाता है परिक्रमा हमेशा सही दिशा से शुरू करनी चाहिए। शास्त्रों के मुताबिक मंदिर की परिक्रमा करते समय भगवान व्यक्ति के दाएं हाथ की ओर होने चाहिए। परिक्रमा घड़ी की सुई की दिशा में करनी चाहिए।
कितनी करनी चाहिए परिक्रमा –
परिक्रमा करते समय ध्यान रखने योग्य बातें-
पं धीरेन्द्र नाथ दीक्षित
Astrotips Team