रक्षाबंधन 2016 के शुभ महूर्त जानने के लिए क्लिक करें
भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन त्योहार प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. बहने अपने भाईओं की कलाई पर प्रेम और विश्वास के प्रतीक को बांधती हैं और भाई भी आजीवन उनकी रक्षा का दायित्व निभाने का वचन देता है. रक्षाबंधन से सम्बंधित पूजा के लिए हिन्दू पंचांग अनुसार दोपहर के बाद का समय (अपराह्न ) ही सर्वश्रेठ माना गया है. अपराह्न के बाद रक्षाबंधन के लिए केवल प्रदोष काल ही उपयुक्त है.
रक्षाबंधन के लिए सबसे अधिक अनुपयुक्त समय भद्रा माना गया है. भद्रा काल हिन्दू वेदों के अनुसार किसी भी तरह के शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है, इसीलिए जहाँ तक हो सके भद्रा काल में रक्षा बंधन से सम्बंधित कोई भी पूजा नहीं करनी चाहिए.
उत्तर भारत के कई प्रान्तों में प्रातः काल में राखी/ रक्षा सूत्र बंधने की प्रथा है. यहाँ ये बात ध्यान देने लायक है कि पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्थ में भद्रा काल होता है. अतः रक्षा सूत्र या राखी बंधने और पूजन के समय के लिए भद्रा काल के समाप्त हो जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए.
भविष्य-पुराण के अनुसार प्राचीन काल में देवासुर-संग्राम में देवताओं द्वारा दानव पराजित हो गए . दु:खी होकर वह दैत्यराज बलि के साथ गुरु शुक्राचार्य के पास गये और अपनी पराजय का वृतान्त बतलाया . इस पर शुक्राचार्य बोले – दैत्यराज आपको विषाद नही करना चाहिए . जय-पराजय तो होती ही रहती हैं . इस समय वर्षभर के लिए तुम देवराज इंद्र के साथ संधि कर लो , क्योकि इंद्र-पत्नी शची ने इंद्र को रक्षा-सूत्र बांधकर अजेय बना दिया हैं .
उसी के प्रभाव से दानवेन्द्र ! तुम इंद्र से परास्त हुए हो .एक वर्ष तक प्रतीक्षा करो, उसके बाद तुम्हारा कल्याण होगा . अपने गुरु की बात सुन कर सभी दानव निश्चिन्त हो गये और समय की प्रतीक्षा करने लगे . रक्षा-बन्धन का विलक्षण प्रभाव हैं.
आज के दिन प्रात: ही सारी क्रियाओ से निवृत हो कर श्रुति-स्मृति विधि से स्नान कर देवताओं और पितरों का निर्मल जल से तर्पण करना चाहिए तद्पश्चात बहनों को अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बंधना चाहिए.