किसी भी मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है परन्तु फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का महत्व सबसे अधिक है तथा उसे शिवरात्रि के रूप में पूजा जाता है. महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह दिन भगवन शिव को समर्पित है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्री को रूद्र रूप में भगवान् शिव का अवतरण हुआ था तथा उनके निराकार का साकार रूप का रात्रि में अवतरण ही महा शिवरात्रि के रूप में पूजा जाता है. प्रलय के समय इसी दिन भागवान शिव अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से पूरे ब्रह्मांड को समाप्त कर देते हैं.
एक और मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान् शिव का हिमालय पुत्री पार्वती से विवाह संपन्न हुआ था.
शिवपुराण के अनुसार शिवरात्रि व्रत करने वाले शिवभक्तों को महान पुण्य के साथ साथ भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है. महाशिवरात्रि व्रत में उपवास , रात्रि जागरण एवं बिल्व पत्रों से शिव लिंग पूजा और रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है. . इस दिन किये गये रुद्राभिषेक से रोग और कष्ट दोनों दूर होते है. रात्रि जागरण एवं उपवास से शिव अपने भक्तों को जीवन में संयम का महत्व सिखाते हैं.
शिव रात्रि व्रत की महत्ता : मान्यताओं के अनुसार यदि कोई मनुष्य शिव रात्रि के व्रत को अनजाने में भी रख लेता है तो उसे परम पुण्य तथा आनंद की प्राप्ति होती है. शिव रात्रि व्रत की परम्परा बहुत पुरानी है. शिवरात्रि पर ब्रह्मा और विष्णु ने भी शिव पूजन किया था.
शिवरात्रि से एक दिन पूर्व यानी त्रयोदशी तिथि को शिव पूजा का विधान है जिसमे व्रत का संकल्प भी लें . व्रत के दिन निराहार रहकर शिव लिंग पर बिल्व पत्र और पंचामृत ( जल, दूध, दही, शहद, शर्करा ) शिवलिंग पर चढाने से भगवान् शिव अति प्रसन्न होते हैं. रात्रि में जागरण कर चारों पहर भगवान् शिव की पूजा करनी चाहिए और अगली सुबह ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर पंचान अनुसार समय पर व्रत का पारण करना चाहिए. इस विधि से किए गए व्रत से जागरण ,पूजा तथा उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा प्राप्त होती है।
यदि इस विधि से भी व्रत करने में असमर्थ हों तो पूरे दिन व्रत करके सांयकाल में भगवान शिव की यथाशक्ति पूजा अर्चना करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं। इस विधि से व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।