मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष एकादशी मोक्षदा एकादशी के नाम से जानी जाती है. इसी दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व मोहित हुए अर्जुन को श्रीमद भगवतगीता का उपदेश दिया था. इस दिन श्री कृष्ण व गीता की पूजा आरती करने के पश्चात उनका पाठ करना चाहिए. गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कर्मयोग पर विशेष बल दिया है तथा आत्मा को अजर अमर अविनाशी बताया है. जिस प्रकार मनुष्य पुराने कपडे छोड़ नए कपडे धारण करता है उसी प्रकार आत्मा भी पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है.
व्रत विधि : पुराणों के अनुसार दशमी तिथि को शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन को शांत एवं स्थिर रखें. किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लायें. परनिंदा से बचें.
प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे तथा स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं. भगवान् विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें। व्रत के दिन अन्न वर्जित है. निराहार रहें और शाम में पूजा के बाद चाहें तो फल ग्रहण कर सकते है. यदि आप किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए।
एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें। एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
सागार : बिल्व पात्र का सागार
फल: मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को कुटुंब सहित समस्त संसारी सुखों का उपभोग करते हुए मोक्ष की प्राप्ति होती है.