" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
Pt Deepak Dubey

Simhastha Kumbh 2016/Kumbh Mahaparv 2016 Simhastha Kumbh Ujjain/Ardh Kumbh 2016/ 

Mahakumbh 2016/ Mahakumbh Snaan Dates/ Ardh Kumbh Snaan Dates

महाकुम्भ 2016/सिंहस्थ कुम्भ 2016/अर्धकुम्भ 2016/कुम्भ महापर्व 2016/ सिंहस्थ कुम्भ उज्जैन 2016

महाकुम्भ स्नान तिथियाँ /अर्द्धकुम्भ स्नान तिथियाँ 2016

Kumbh parv

 

कुम्भ पर्व भारत की अति प्राचीन परंपरा है. यह पर्व भारत की प्राचीन गौरवमयी वैदिक संस्कृति एवं सभ्यता का प्रतीक है. कुम्भ पर्व जैसे धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों का मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि एवं आत्मकल्याण होता है. ऋषि -महर्षि, साधू-संत और विद्वान् जनो का समागम राष्ट्र की ऐतिहासिक एवं पारलौकिक व्यवस्था पर विचार -विमर्श करना और समाज को नवीन चेतना प्रदान करना होता है. कुम्भ महापर्व के कारण देश काल एवं वातावरण पर धार्मिक महत्ता का वर्चस्व भी स्थापित होता है.

कुम्भ पर्व से सम्बंधित कथा

कुम्भ पर्व कब से प्रारंभ हुआ यह कहना कठिन है. वेदों में कुम्भ पर्व का आधार सूत्रों एवं मन्त्रों में वर्णित है. पुराणों की कुछ कथाओं में भी कुम्भ पर्व का उल्लेख मिलता है. जिनमे सबसे अधिक प्रचलित कथा “समुद्र मंथन” है. स्कन्दपुराण में वर्णित कथा अनुसार- एक समय भगवान् विष्णु के निर्देशानुसार देवों तथा असुरों ने मिलकर संयुक्त रूप से “अमृत कुम्भ” प्राप्ति के लिए शिरोद् सागर में मंदराचल पर्वत एवं वासुकी नाग के द्वारा समुद्र मंथन किया. जिससे सबसे पहले  हलाहल (विष) उत्पन्न हुआ. जिसे भगवान् शिव ने विश्व कल्याण हेतु पी लिया. हलाहल विष की ज्वालाओं के शांत होने पर पुनः समुद्र मंथन में से पुष्पक विमान, एरावत हाथी , पारिजात वृक्ष , नृत्य कला में प्रवीण रम्भा, कौस्तुभ मणि, द्वितीय का बाल चन्द्रमा, कुंडल, धनुष, कामधेनु गाय, अश्व, लक्ष्मी, शिल्पी विश्वकर्मा और अमृत कलश लिए धन्वन्तरी देव उत्पन्न हुए.

धन्वन्तरी के हाथों में शोभायमान “कुम्भ” उत्त्पन्न हुआ, जो मुख तक अमृत से पूर्णयता भरा हुआ था. भगवान् विष्णु की कृपा से वह अमृत कुम्भ इंद्र को प्राप्त हुआ. देवताओं के संकेत पर इंद्रपुत्र ‘जयंत ‘ अमृत कुम्भ को लेकर बहुत आवेग से भागे. दैत्यगण  जयंत का पीछा करने लगे. अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और राक्षसों के मध्य बारह दिव्य दिनों (मानुषी बारह वर्ष ) तक युद्ध हुआ. इस युद्ध में “अमृत कुम्भ” की रक्षा करते समय पृथ्वी के जिस जिस स्थान पर अमृत की बूंदे गिरी थी , उन्ही स्थानों पर (प्रयाग, हरिद्वार, उजैन , नासिक) पर कुम्भ महा पर्व मनाया जाता है. तत्पश्चात मोहिनी रूप धर कर  भगवान् विष्णु ने दैत्यों से अमृत कलश ले लिया और देवताओं की पिला दिया और देवता अमृत पी कर अमर हो गये.

पुराणों के अनुसार अमृत कुम्भ की प्राप्ति के लिए बृहस्पति, चन्द्रमा एवं सूर्य ने विशेष सहायता की थी , इसी कारण सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति तीनो ग्रहों के विशेष योग से ही  कुम्भ महा पर्व आयोजित किया जाता है. चार महाकुम्भ पर्व पर्वों के अतिरिक्त हरिद्वार एवं प्रयागराज में अर्द्ध कुम्भ पर्व प्रत्येक 6 वर्षों के अंतराल में मनाये जाते हैं.

वर्ष 2016 में भारत वर्ष में दो महापर्व घटित हो रहे है. 

1) अर्द्धकुम्भ -पर्व 

 

(अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें)

स्थान : हरिद्वार 

(20 मार्च 2016 से 6 मई 2016 तक )

प्रमुख स्नान : 13 अप्रैल , बुधवार 2016

2) कुम्भ महापर्व/सिंहस्थ कुम्भ

 

(अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें)

स्थान : उज्जैन

(13 अप्रैल, 2016 से 21 मई, 2016 तक )

प्रमुख शाही स्नान  : 21, मई , शनिवार , 2016


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