चतुर्थी तिथि आरम्भ : 5 मार्च , 1:05
चतुर्थी तिथि समाप्त : 6 मार्च , 00:36
चैत्र कृष्ण चतुर्थी के दिन “विकट” नाम के श्री गणेश का पूजन करने का विधान है. इस संकटनाशी व्रत के दिन मनुष्य पंचगव्य का पान करें, गणेशपूजन कर बिजौरा तथा घी का हवन करें.
व्रत का फल : इस व्रत को करने से संकट दूर होता हैं. इस व्रत को करने के फल-स्वरूप वन्ध्या को पुत्र की प्राप्ति होती है .
सतयुग में एक मकरध्वज नाम का राजा था .वह अपनी प्रजा का पुत्रों जैसा पालन करता था उसके राज में प्रजा सभी प्रकार से सुखी थी .याज्ञवल्क्यजी की कृपा से राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई ,राजा ने अपने मंत्री धर्मपाल को राज्य का भार सौंपकर अपने पुत्र का पालन करने लगा मंत्री धर्मपाल के पांच पुत्र थे . उसने सभी लड़कों का विवाह कर दिया .उसके छोटे लड़के की बहू बहुत ही धर्म परायण थी .
चैत्र की चौथ को व्रत कर गणेश पूजन करने लगी .उसके व्रत को देख कर उसकी सास बोली –अरी ये क्या कर रही ?ये सब मत किया कर. वह सास के मना करने के बाद भी श्री गणेश का व्रत पूजन करती रही . सास उसे बहुत डराया धमकाया तो बहु ने बोला माताजी मैं संकटनाशी श्री गणेश व्रत कर रही हूँ .सास को बहुत गुस्सा आया और अपने छोटे बेटे से बोली-पुत्र तेरी स्त्री जादू-टोना करती है मना करने पर कहती है की गणेश व्रत पूजन करती है हम नहीं जानते की गणेश जी कौन हैं ? तुम इसकी खूब पिटाई करो ये तब मानेगी.
पर पति से मार खाने के बाद भी बड़ी पीड़ा और कठिनाई के साथ उसने श्री गणेश व्रत किया और प्रार्थना की- हे गणेश जी ! मेरे सास-ससुर के ह्रदय में अपनी भक्ति उत्पन्न करो . श्री गणेश जी ने राजकुमार को धर्मपाल के घर छिपा दिया बाद में उसके वस्त्र आभूषण उतार कर राजा के भवन में डालकर अंतर्ध्यान हो गए .
राजा अपने पुत्र को ढूंढने लगे और धर्मपाल को बुलाकर बोले- मेरा पुत्र कहाँ गया ? मंत्री धर्मपाल ने बोला मैं नहीं जानता की राजकुमार कहा गया ?अभी उसे सभी जगहों पर ढूढ़वाता हूँ .दूतो ने चारो ओर तलाश किया परन्तु राजकुमार का पता नहीं चला .पता नही चलने पर राजा ने मंत्री धर्मपाल को बुलाया और बोले दुष्ट यदि राजकुमार नही मिले तो तेरे कुल सहित तेरा बध करूंगा. धर्मपाल अपने घर गया अपनी पत्नी बंधू-बांधवों को राजा का फरमान सुनाया-विलाप करने लगा की अब हमारे कुल में कोई नही बचेगा राजा सब का बध कर देगें अब मैं क्या करूं मेरे कुटुम्ब-परिवार की रक्षा कौन करेगा ?
उनके ऐसे वचन सुनकर छोटी बहु बोली—पिता जी !आप इतने दू:खी क्यों हो रहे हो ?यह हमारे ऊपर गणेश जी का कोप हैं इसलिए आप विधिपूर्वक गणेश जी का व्रत-पूजन करें तो अवश्य पुत्र (राजकुमार) मिल जायेगा .इस व्रत को करने से सारे संकट दूर होते है,यह संकटनाशी व्रत हैं .
मंत्री धर्मपाल ने राजा को यह बात बताई राजा ने प्रजा के साथ श्रध्दा-पूर्वक चैत्र-कृष्ण चतुर्थी को श्री गणेश का संकटनाशी व्रत किया जिसके फल-स्वरूप श्री गणेश जी प्रसन्न हो सब लोगो को देखते-देखते राजकुमार को प्रकट कर दिया . इस लोक में सभी व्रतों में इससे बढ़कर अन्य कोई व्रत नहीं हैं .
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