चतुर्थी तिथि आरम्भ : 28 सितम्बर, 8:44 AM
चतुर्थी तिथि समाप्त : 29 सितम्बर, 8:03 AM
व्रत का फल : आश्विन मास की चौथ सभी शत्रुओं पर विजय दिलाने वाली है.
आश्विन में कृष्ण नामक गणेश जी का पूजन तथा विधिपूर्वक व्रत करना चाहिए . व्रती को इस दिन क्रोध, भोजन, लोभ, पाखण्ड को त्याग कर गणेश का ध्यान करना चाहिए . इस दिन दूब तथा हल्दी को मिलाकर हवन करें .
एक समय बाणासुर की कन्या उषा ने स्वप्न में अनिरुद्ध को देखा .जागने पर उषा को बहुत दुःख हुआ तब चित्रलेखा ने सहेली को तीन लोक तथा चौदह भवनों के प्राणियों के चित्र बनाकर दिखाए . अनिरुद्ध के चित्र को देख कर उषा ने कहा कि मैंने स्वप्न में इन्हीं को देखा हैं . इनके बिना जीवित नहीं रह सकती हूँ , जहाँ भी यह हो इन्हें ला कर दो . अपनी सखी के बचन अनुसार चित्रलेखा द्दारिका में अनिरुद्ध को पहचान कर हरण करके सायंकाल गोधूलि के समय बाणासुर के नगर में ले आई .
द्वारका में अनिरुद्ध को प्रद्दुमन आदि ने नहीं देखा तो वे बहुत ही दु:खी हुए और रुदन करने लगे . रूक्मिणी जी भी अपने नाती के वियोग में बहुत दु:खी हुई और दु:खी हो श्री कृष्ण से पूछी मेरा नाती कहाँ गया है ? यदि उसका पता नहीं चला तो मैं अपने प्राणों को त्याग दूगीं . रुक्मिणी को सांत्वना देकर श्री कृष्ण राज्य-सभा में आये और लोमश मुनि से सारा वृतान्त कहा . श्री लोमश मुनि बोले हे राजन ! गणेश का व्रत करने से आपको नाती की प्राप्ति होगी साथ ही पौत्र-वधु की भी . आप आश्विन मास की संकटा नामक चौथ का व्रत करके गणेश का पूजन करें .
श्री कृष्ण ने वैसा ही किया जैसा श्री लोमेश मुनि ने बताया और व्रत के प्रभाव से बाणासुर पर विजय प्राप्त कर उषा सहित अनिरुद्ध को ले आये .
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