चतुर्थी तिथि आरम्भ : 25 दिसम्बर, 01:47 PM
चतुर्थी तिथि समाप्त : 26 दिसम्बर, 10:46 AM
व्रत का फल : जो भी इस व्रत को श्रध्दा पूर्वक करता है उसे सफलता अवश्य प्राप्त होती हैं .
एक समय रावण ने स्वर्ग के सभी देवताओं को जीत लिया संध्या करते हुए बाली को पीछे से जाकर पकड़ लिया . वानरराज बाली रावण को अपनी बगल (कांख) में दबाकर किष्किन्धा नगरी ले आये और अपने पुत्र अंगद को खेलने के लिए खिलौना दे दिया . अंगद रावण को खिलौना समझकर रस्सी से बांधकर इधर उधर घुमाते थे .
इससे रावण को बहुत कष्ट और दु:ख प्राप्त हुआ .रावण ने दु:खी मन से अपने पितामह पुलस्त्य जी को याद किया . रावण की इस दशा को देखकर पुलस्त्य ने विचारा की रावण की यह दशा क्यों हुई ? अभिमान हो जाने पर देव, मनुष्य, असुर, सभी की यही गति होती है . पुलस्त्य ऋषि ने रावण से पूछे तुमने मुझे क्यों याद किया है ? रावण बोला- पितामह मैं बहुत दु:खी हूँ , यह नगरवासी मुझे धिक्कारते हैं अब आप मेरी रक्षा करें . रावण के मुखं ऐसे वचनों को सुनकर पुलस्त्य बोले – रावण तुम डरों नहीं तुम इस बन्धन से जल्दी मुक्त होगे तुम विघ्नविनाशक गणेशजी का व्रत करो . पूर्वकाल में वृत्रासुर की हत्या से छुटकारा पाने के लिए इंद्र ने इस व्रत को किया था . इस लिए तुम भी इस व्रत को करो
रावण ने भक्तिपूर्वक इस व्रत को किया और बन्धन रहित हो अपने राज्य को प्राप्त किया .
जो भी इस व्रत को श्रद्धा-पूर्वक करता हैं उसे सफलता अवश्य प्राप्त होती हैं .
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