हनुमान जी को प्रसन्न करने के उपाय
शास्त्रों के अनुसार कलियुग में हनुमान जी जीवंत देवताओं में से एक हैं। हनुमान जी को सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में गिना जाता है। प्रत्येक वर्ष हनुमान जयंती चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। हनुमान जी भगवान शिव के 11वें अवतार और रामजी के परम भक्त हैं। हनुमानजी का जन्मदिन साल में दो बार मनाने की परंपरा है। हनुमान जी का पहला जन्मदिन चैत्र पूर्णिमा को और दूसरा कार्तिक माह की चौदस को मनाया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक, भगवान हनुमान की पूजा करने पर राहु और शनिदोष की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी को प्रसन्न करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं और सुख-समृद्धि, धन-दौलत की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों के मुताबिक किसी भी मनोकामना की पूर्ति के लिए हर रोज रात के समय हनुमानजी के सामने तेल का दीपक जलाना चाहिए। दीपक सूर्यास्त के बाद रात के समय जलाना ज्यादा लाभप्रद होता है। इस उपाय में मिट्टी के दीपक का ही प्रयोग करना चाहिए। दीपक में रूई की बत्ती और सरसो का तेल डालने के बाद हनुमानजी के मंत्रों का जप करते हुए दीपक जला दें और श्रद्धापूर्वक उनकी अराधना करें।
साथ ही हनुमान जी को प्रसन्न करने का एक अकाट्य और अद्वितीय उपायों की पौराणिक ग्रंथों में चर्चा है। हनुमान जयंती के दिन से या फिर किसी मंगलवार से इस उपाय को चालीस दिन तक लगातार करना चाहिए। रोजाना सूर्यास्त के बाद हनुमान मंदिर में एक घी का दीया जलाना चाहिए। चालीस दिन की अवधि पूर्ण होने पर आप उस दिन हनुमान जी की यथासंभव विशेष अराधना करे। आपकी जो भी मनोकामना है वह जरूरी पूरी होती है। ध्यान रहे चालीस दिन के अंतराल में यह प्रयोग किसी भी दिन छूटना नहीं चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी की माता अंजना एक अप्सरा थीं, उन्होंने श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्म लिया और इस श्राप से उनकी मुक्ति तभी होती जब वे एक संतान को जन्म देतीं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार केसरी श्री हनुमान जी के पिता थे। वे सुमेरू राज्य के राजा थे और केसरी बृहस्पति के पुत्र थे। अंजना ने संतान प्राप्ति के लिए 12 वर्षों की भगवान शिव की घोर तपस्या की और परिणाम स्वरूप उन्होंने संतान के रूप में हनुमानजी को प्राप्त किया। ऐसा विश्वसा है कि हनुमानजी भगवान शिव के ही अवतार हैं।
व्रत की पूर्व रात्रि को ज़मीन पर सोने से पहले भगवान राम और माता सीता के साथ-साथ हनुमान जी का स्मरण करें। प्रात: जल्दी उठकर दोबार राम-सीता एवं हनुमान जी को याद करें। प्रात: जल्दी स्नान ध्यान करें। हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प करें। पूर्व की ओर भगवान हनुमानजी की प्रतिमा को स्थापित करें। विनम्र भाव से बजरंगबली की प्रार्थना करें। षोडशोपाचार की विधि विधान से श्री हनुमानजी की आराधना करें।
ज्योतिषियों के अनुसार पूजा करने के लिए पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठे। याद रहे कि पूजा करने समय लाल आसन पर ही बैठें। पूजा करते समय लाल धोती और ऊपर वस्त्र चादर, दुपट्टा आदि डालना शुभ माना गया है । हनुमान जी की मूर्ति के सामने सरसों या तिल के तेल का दीप एवं धूप जलानी चाहिए। साथ ही उनके द्वादश नामों का स्मरण 151 बार करना चाहिए।
एक बार माता सीता को हनुमान जी ने सिन्दूर लगाते देख पूछा, “माता ये क्या लगा रही हैं ?” माता ने बोला इसे (सिन्दूर) लगाने से हमारे प्रभु श्री राम प्रसन्न होते हैं इसलिए लगा रही हूँ, तब अपने प्रभु श्री राम को प्रसन्न करने के लिए हनुमान ने अपने पूरे शारीर में सिन्दूर लगा लिया .
इसी प्रकार तेल की भी छोटी सी घटना हैं एक बार शनिदेव गन्धमादन पर्वत की तरफ से गुजरे. हनुमान की ध्यानमग्नता को देख कर उन्हें हनुमान से इर्ष्या होने लगी. शनि का अकारण अहंकार जगा और उन्होंने सोंचा नियमानुसार मैं इस वानर के राशि पर आ ही गया हूँ . अब दो-चार पटकनी देकर इसकी दुर्दशा का आनन्द भी हाथो-हाथ ले लू . उन्होंने पवनपुत्र को ललकारा .हनुमान का ध्यान टूटा . हनुमान ने अपने सामने उपस्थित शनिदेव को पहचान कर उन्हें नमस्कार करते हुए विनत स्वर में कहा –”मैं अपने प्रभु श्री राम के ध्यान में लीन हूँ .कृपा कर मुझे अपनी अर्चना करने दीजिये “.
शनि ने उन्हें कहा –वानर-राज मैंने देव-दानव और मनुष्य लोक में हर जगह तुम्हारी प्रशंसा सुनी हैं अत: यह कायरता छोड़ निडर होकर मुझसे युद्ध करो . मेरी भुजाएं तुम्हारे बल का परिमापन करने के लिए फड़–फडा रही हैं . मैं तुम्हे युद्ध के लिए ललकार रहा हूँ . शनि की घृष्टता देखकर, हनुमान ने अपनी पूँछ बढाई और उसमे शनि को बुरी तरह लपेट लिया , और ऐसा कसा कि शानि बेबस, असहाय होकर छटपटाने लगे .इतने में रामसेतु की परिक्रमा का समय हो गया . हनुमान जी तेजी से दौड़ते हुए परिक्रमा करने लगे . पूँछ से बंधे शनि पत्थरों, शिलाखंडों, बड़े-बड़े विशाल वृक्षों से टकराकर लहूलुहान हो गये. व्यथित हो कर पीड़ा से दु:खी शनि पवनपुत्र से बन्धन मुक्त करने की प्रार्थना करने लगे तो हनुमान ने शनि से वचन लिया कि श्री राम की भक्ति में लीन मेरे भक्त को तुम कभी तंग नही करोगे . असहय वेदना से शनि का अंग-अंग पीड़ित था .छटपटाते शनि ने हनुमान से तेल माँगा उस दिन मंगलवार था, अतः मंगलवार के दिन जो हनुमान जी को तेल चढ़ता है वो सीधे शनि को मिलता हैं और शनि प्रसन्न हो कर भक्त को आशीर्वाद देते है. इस प्रकार तेल और सिन्दूर को मिला कर हनुमान जी को लगाया जाता हैं . जिससे भक्तो को लाभ व आशीर्वाद मिलता है.
श्री हनुमान चालीसा ऋण मोचक मंगल स्तोत्र हनुमान जी को प्रसन्न करने के उपाय