पूर्वकाल में रन्तिदेव नाम के राजा हुआ करते थे . वे बहुत धर्मात्मा व दानी थे . वे अपने पहले जन्मो में भी धर्मात्मा, दानी थे . पूर्व-जन्मो की भांति इस जन्म में भी राजा ने बहुत दान-धर्म किया तथा दान-धर्म से बहुत पुण्य अर्जित किये. जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने आये और राजा को लाल-लाल आखें दिखा कर बोले राजन ! नरक में चलों तुम्हे वहीँ चलना पड़ेगा .
यह सुन राजा घबराया और उन दूतो से नरक में जाने का कारण पूछा तो यमदूतों ने बताया – राजन! आपने जितने भी दान-पुण्य किये है उसे सभी जानते है, पर आपसे जो पाप हुआ है वो केवल भगवान और धर्मपाल ही जानते है .
राजा बोले –उस पाप को मुझे बताओ ताकि मैं उसका निवारण कर सकूं . राजा रन्तिदेव के पूछने पर यमदूत ने बताया –एक बार तुम्हारे दरवाज़े से एक भूखा ब्राह्मण बिना कुछ प्राप्त किए भूख से व्याकुल वापस चला गया था . जिस कारण तुम्हे नरक में जाना पड़ रहा हैं . यह सुन कर राजा रन्तिदेव ने यमदूतों से विनती की कि- मेरी आयु एक वर्ष बढ़ा दी जाए इस विषय को दूतों ने बिना सोचे-विचारे स्वीकार कर लिया और राजा की आयु एक वर्ष बढ़ा दी .
यमदूत चले गए. राजा नें ऋषियों से इस अनजाने में हुए पाप से मुक्ति पाने का उपाय पुछा ऋषियों ने बताया हे राजन! तुम कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत कर भगवान कृष्ण का पूजन करो .ब्राह्मणों को भोजन करा दान देकर, अपने अपराध सुनाकर उनसे क्षमा मांगना, वे तुम्हे क्षमा कर देगे और तुम पाप मुक्त हो जाओगे .
राजा रन्तिदेव ने ऐसा ही किया –कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आने पर राजा ने विधि-विधान से व्रत पूजा की और अंत में विष्णुलोक प्राप्त किया.
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