शनि को वृद्धावस्था का स्वामी कहा गया है वृद्ध जनों की सेवा से शनि देव प्रसन्न होते हैं. वृद्धावस्था में मनुष्य काम वासनाओं से विमुख होकर देवत्व को प्राप्त होता है अतः परिवार में वृद्धों का सम्मान एवं सेवा तथा अपने सामर्थ के अनुसार वृद्धाश्रम की सेवा से शनि विशेषरूप से प्रसन्न होते हैं.
शनि देव दरिद्रनारायण के नाम से भी जाने जाते हैं अतः अपनी कमाई का दस प्रतिशत दान कार्यों में अवश्य लगायें. दीं दुखियों की सेवा से शनि देव देव प्रसन्न होते हैं.
विनम्र व्यवहार अपनाने से आशीर्वाद की प्राप्ति होती है. अपने से कमज़ोर के समक्ष भी विनम्र रहने का प्रयत्न करें.
ज़रूरतमंद को काला छाता, चमड़े के जूते-चप्पल भेंट करने से शनि देव को प्रसन्न किया जा सकता है.
शनि देव को उड़द दाल के लड्डू या गुड और चने के लड्डू का भोग लगाकर बांटने से भी रुष्ट शनि शांत होते हैं.
प्रत्येक शनिवार तेल मालिश के उपरान्त स्नान करने से शनि साढ़े साती के अनिश प्रभावों से बचा जा सकता है.
अनिष्ट शनि को शांत करने के लिए काले वस्त्र या वस्तुएं , चमड़े से बनी वस्तुएं , लोहे का सामान सरसों का तेल आदि दान किसी निर्बल या असाध्य व्यक्ति को करना चाहिए.
तरल पदार्थों में शनि तेल और शराब का कारक माना गया है अतः शनि के प्रकोप से बचने के लिए तेल का दान और शराब से दूर रहने का परामर्श अवश्य दिया जाता है.
अपने अधीनस्थ कर्मचारियों, सफाई कर्मचारियों, नौकरों, वृद्ध , निसंतान , वैरागी , ज्योतिषी , पुजारी आदि को सताना नहीं चाहिए. यह लोग जनसाधारण में शनि के प्रतिनिधि के रूप में जाने जाते हैं. जितना हो सके उचित दक्षिणा देकर इन्हें प्रसन्न रखें.
शनि साढ़े साती में सभी प्रकार के व्यसनों से दूरी बनाये रखें और अकेलेपन से बचें. जितना हो सके अपने आप को व्यस्त रखें एवं परिवार जनो या मित्रों के बीच समय बिताएं.
अपने घर में साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखें . कोई भी कोना गन्दा न रहे.
बिजली से चलने वाले उपकरण या मशीन ख़राब न रखें तुरंत ठीक कराएं.
घर के किसी भी कोने में अँधेरा न रखे सभी जगह प्रकाश की उचित व्यवस्था करें.
क्रोध और आवेश पर नियंत्रण रखें.
दशरथ कृत “शनि स्तोत्र” का पाठ करने से जातक को शनि के शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
शनि से उत्त्पन्न भीषण कष्टों के निवारण के लिए भगवान् शिव और हनुमान जी की उपासना के अलावा कोई विकल्प नहीं है.