इस एकादशी का नाम पद्मा एकादशी भी है।प्राचीन काल में मान्धाता नाम का एक सूर्यवंशी राजा था. रजा मांधाता चक्रवर्ती ,सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धनधान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ा था.
परन्तु एक समय ऐसा भी आया कि राजा मांधाता के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई. अन्न की भीषण कमी के कारण राज्य में त्राहि त्राहि होने लगी. बेहाल प्रजा राजा के सामने अपना दुखड़ा लेकर पहुँचने लगी. वर्षा न होने के कारण राजा के भी यज्ञ हवन कार्यों में विघ्न पड़ने लगा था.
राजा सोचने लगा कि जब वह ईश्वर की पूजा आराधना यज्ञ आदि कार्य मैं निरंतर पूर्ण करता हूँ तो फिर मेरे राज्य में अकाल क्यों? प्रजा के आग्रह पर राजा मान्धाता ने बहुत सोच विचार किया और किसी विद्वान् की खोज में निकल पड़ा जो उसकी समस्या का हल बता सके.
कई ऋषि मुनियों तपस्वियों से मिलता हुआ राजा मान्धाता अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया।
मुनि ने भी राजा को आशीर्वाद देकर उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से अपना दुःख कह डाला. अकाल के प्रभाव से प्रजा को जो दुःख झेलना पड़ रहा है उसका समाधान जानने के लिए राजा ने मुनिवर से विनती की .
इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है।
उस शूद्र का वध ही इस समस्या का निराकरण है. इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तो तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो।
मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा।