ज्योतिष , योग और आयुर्वेद के उद्भव का समय एक ही है अर्थात वैदिक काल . जहाँ योग और आयुर्वेद हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य रखने में सहायक हैं वहीँ ज्योतिष के माध्यम से हम आने वाली समस्याओं से अवगत हो सकते हैं और यदि हम उसके अनुसार पहले से ही अपना खयाल रखें तो बहुत सी समस्याओं से हम अपने को बचा सकते हैं , शायद इसीलिए कहा गया है कि सावधानी उपचार से बेहतर है .
ज्योतिष में सबकुछ ग्रहों की स्थिति पर निर्भर होता है और उसी के माध्यम से हम आने वाली समस्याओं या स्थितिओं को जान पाते हैं . ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए बहुत से उपाय बताये जाते हैं , लेकिन आप यह जानकर हैरान होंगे कि ग्रहों के नकारत्मक प्रभाव को हम योग से भी नियंत्रित कर सकते हैं .
आइये देखते हैं कौन से ग्रह के लिए कौन सा योग और प्राणायम करें जिससे उससे सम्बंधित होने वाली समस्याओं और रोगों से आप दूर रहें –
सूर्य : कुंडली में नकारात्मक सूर्य के होने से सबसे अधिक प्रभाव हमारे आत्मविश्वास पर पड़ता है , साथ ही हम इतने अधिक नकारात्मक हो जाते हैं कि हमारा आभा मंडल प्रभावित हो जाता है . इसके अलावा दृष्टि की समस्या , स्नायु तंत्र की कमजोरी , ह्रदय रोग, रक्त की कमी इत्यादि से हम जूझने लगते हैं . इसे दूर करने के लिए हमें नियमित अनुलोम – विलोम , भस्त्रिका , अग्निसार के साथ – साथ सूर्य नमस्कार करना चाहिए इससे सूर्य जनित समस्याओं में अद्भुत लाभ मिलेगा .
चंद्रमा : कमजोर चंद्रमा आपको अत्यधिक भावुक बना देता है जिसके कारण आपको भौतिक जगत में कदम – कदम पर समस्यों से जूझना पड़ता है . साथ ही कमजोर चंद्रमा के कारण आप हमेशा तनाव और बेचैनी महसूस करते हैं . यदि आपकी कुंडली में भी कमजोर चंद्रमा है तो इसे मजबूत करने के लिए आपको नियमित अनुलोम – विलोम और भस्त्रिका प्राणायाम करना चाहिए , यदि इसके साथ आप ॐ का उच्चारण भी कुछ समय के लिए किया करें तो आपको अद्भुत परिणाम प्राप्त होगा . हाँ पानी भी खूब पीया करें .
मंगल : जब मंगल का प्रभाव आपकी कुंडली में नकारात्मक होता है तो यह अत्यधिक नकारात्मक स्वभाव का सृजन करता है . सेक्स के मामले में या तो बहुत कमजोर कर देता है या अत्यधिक कामुक बना देता है और दोनों ही स्थितियां नकारात्मक हैं . इसके अलावा यह आपकी उर्जा को इतना बढ़ा देता है कि आप आवश्यकता से अधिक क्रियाशील हो जायेंगे या अत्यधिक आलसी बना देगा और यह सभी स्थितियां ठीक नहीं हैं . नकारात्मक मंगल के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए आपको नियमित – पद्मासन , तितली आसन , मयूर आसन और शीतलीकरण प्राणायाम करना चाहिए .
बुध : बुध जब आपकी कुंडली में नकारात्मक प्रभाव लिए हुए होता है तो आपकी निर्णय शक्ति अत्यंत ही कमजोर हो जाती है . चूँकि आपके जीवन में आपके लिए हुए निर्णय ही हर परिस्थिति के लिए जिम्मेदार होते हैं अतः आप अपने जीवन में बुध की महत्ता को समझ सकते है . दूषित बुध चर्म रोग का सबसे बड़ा कारक होता है . दूषित बुध को नियंत्रित करने के लिए आपको नियमित भस्त्रिका, भ्रामरी और अनुलोम -विलोम प्राणायाम करना चाहिए निःसंदेह यदि इसके साथ आप ॐ का उच्चारण करें तो आपकी निर्णय शक्ति में अद्भुत वृद्धि होगी और आपका मन – मष्तिष्क और रोग प्रतिरोधक क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि होगी . हाँ यदि साथ में हरी सब्जियों का सेवन भी बढ़ा दें तो सोने पे सुहागा हो जाये .
बृहस्पति : जब आपकी कुंडली में बृहस्पति दूषित हो तो लीवर की समस्या का उठना लगभग तय होता है . दूषित बृहस्पति मोटापे और मधुमेह का सबसे बड़ा कारक है . इसके अलावा दूषित बृहस्पति कैंसर रोग देने में भी समर्थ होता है . बृहस्पति को नियंत्रित करने के लिए यदि आप नियमित कपाल भांति , सर्वांग आसन , अग्नि सार क्रिया करें तो अत्यंत ही लाभकारी होगा , यदि सूर्य नमस्कार भी साथ में जोड़ दें तो लाभ बहुत अधिक और जल्दी मिलेगा . हाँ मीठे और पीली वस्तुओं से परहेज भी आवश्यक है .
शुक्र : शुक्र के कुंडली में दूषित होने से जननांगों की समस्या उत्पन्न होती है साथ ही यह सेक्स सम्बन्धी समस्या भी उत्पन्न करता है . महिलाओं में मासिक धर्म से सम्बन्धी समस्या का यह बहुत बड़ा कारक है . साथ ही यह जीवन में भौतिक सुखों से भी वंचित कर देता है . दूषित या कमजोर शुक्र को नियंत्रित करने के लिए यदि आप नियमित धनुरासन , हलासन , मूलबंध और जानुसिरासन क्रिया करें तो यह बहुत ही लाभकारी होगा . साथ ही यदि ठंडी वस्तुओं जैसे दही – चावल इत्यादि का रात्रि में सेवन ना करें तो और भी बेहतर और शीघ्र परिणाम प्राप्त होगा .
शनि : कुंडली में यदि शनि दूषित हो जाये तो व्यक्ति गैस्ट्रिक , एसिडिटी , आर्थराइटिस , उच्च रक्त चाप , तथा ह्रदय सम्बन्धी रोगों से प्रभावित हो जाता है . इन सभी समस्याओं से आपके अन्दर झुझलाहट , बेचैनी , आलस्य , अनिद्रा इत्यादि बढ़ जाती है जिसके कारण आपके कार्यों पर प्रभाव पड़ता है परिणाम स्वरूप आर्थिक और मानसिक तनाव दोनों ही हावी हो जाते हैं . दूषित शनि को नियंत्रित करने के लिए कपाल भांति , अनुलोम – विलोम , अग्निसार ,पवनमुक्त शीतलीकरण और भ्रामरी प्राणायाम और आसन को नियमित रूप से करना चाहिए . इसके साथ – साथ यदि गरिष्ठ और तैलीय पदार्थों का सेवन भी त्याग दें तो लाभ शीघ्र और लम्बे समय के लिए होगा .
राहू : राहू लगभग सदैव नकारात्मक प्रभाव ही देता है , विशेष कर यदि यह आपकी लग्न , द्वितीय , पंचम और अष्टम में हो तो इसके परिणाम बेहद नकारात्मक होता है . बुध की तरह राहू का सबसे अधिक प्रभाव आपके मस्तिष्क और सोचने – समझने की शक्ति पर पड़ता है . आपकी निर्णय शक्ति प्रभावित हो जाती है , सोच और मस्तिष्क पर धुंध छा जाता है . वाणी कडवी और दूषित हो जाती है . अनावश्यक क्रोध और अनावश्यक के तर्क में आपकी रूचि बढ़ जाती है जिसके कारण आप बहुत सी समस्याओं को स्वयं पैदा कर लेते हैं . राहू के प्रभाव को कम करने के लिए सबसे बेहतर उपचार योग और ध्यान ही है , इसके लिए यदि आप नियमित अनुलोम – विलोम , भ्रामरी , उद्गीत और भस्त्रिका प्राणायाम करें तो अत्यंत ही लाभ मिलेगा साथ ही यदि ॐ के उच्चारण के साथ कुछ समय के लिए आंखे बंद कर ध्यान की अवस्था में बैठें तो बहुत लाभ मिलेगा .
केतु : दूषित केतु रक्त की कमी , बवासीर , अपच , चर्म रोग तथा स्नायु तंत्र सम्बन्धी समस्यायें उत्पन्न करता है . यह रक्त में अशुद्धि भी उत्पन्न करता है . दूषित केतु को नियंत्रि करने के लिए आपको अग्निसार , अनुलोम – विलोम ,कपाल भांति तथा सिरासन करना चाहिए .
तो अब आप योग के माध्यम से अपने दूषित ग्रहों के प्रभाव को कम करें , अपने जीवन को स्वस्थ , समृद्ध और खुशिहल बनायें
पं. दीपक दूबे
ॐ नमः शिवाय !