चतुर्थी तिथि आरम्भ : 3 फरवरी ,10:35
चतुर्थी तिथि समाप्त : 4 फरवरी , 08:57
व्रत का फल : फाल्गुन गणेश चौथ व्रत करने वाले भक्तों के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं.
सतयुग में एक धर्मात्मा युवनाश्व राजा था . उसके राज्य में वेदपाठी धर्मात्माविष्णु शर्मा ब्राह्मण रहता था. उसके सात पुत्र थे और सभी अलग अलग रहने लगे . विष्णु शर्मा क्रम से सातों के यहाँ भोजन करता हुआ वृद्धावस्था को प्राप्त हुआ . बहुएं अपने ससुर का अपमान करने लगी .
एक दिन गणेश चौथ का व्रत करके अपनी बड़ी बहू के पास घर गया और बोला बहू आज गणेश चौथ हैं , पूजन की सामग्री इकठ्ठी कर दो . बहू बोली घर के काम से छुट्टी नही हैं.. तुम हमेशा कुछ न कुछ लगाये रह्ते हो अभी नही कर सकते ऐसे अपमान सहते हुए अंत में सबसे छोटी बहू के घर गया और पूजन की सामग्री की बात कही तो उसने कहा आप दु:खी न हो मैं अभी पूजन सामाग्री लाती हूँ .
वह भिक्षा मांग करके सामान लाई ,स्वयं व अपने ससुर के लिए सामग्री इकठ्ठा कर दोनों ने भक्ति-पूर्वक विघ्ननाशक की पूजा की . छोटी बहू ने ससुर को भोजन कराया और स्वयं भूखी रह गई . आधी रात को विष्णु शर्मा को उल्टी होने लगी , दस्त होने लगे . उसने अपने ससुर के हाथ पांव धोये . साड़ी रात दु:खी रही और जागरण करती रही .प्रात:काल हो गया . श्री गणेश की कृपा से ससुर की तबियत ठीक हो गई और घर में चारो ओर धन ही धन दिखाई देने लगा जब और बहुओ ने छोटी बहू का धन देखा तो उन्हें बड़ा दु:ख हुआ उन्हें अपनी गलती का भान हुआ वे भी क्षमा मागते हुए गणेश व्रत की और वे भी सपन्न हो गई .
इस प्रकार श्री गणेश चौथ व्रत कर अपने सभी मनोरथ पूर्ण करें .
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