2017 – 4 जून
2018 – 24 मई
2019 – 12 जून
गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता हैं | ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष सोमवार दशमी तिथि हस्त-नक्षत्र में गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था | ऐसा माना जाता है कि इस दिन गंगा ने धरती पर अवतरित होकर भागीरथी के पूर्वजों का उद्धार किया था. यह तिथि बहुत महत्वपूर्णमानी गई है . इस दिन गंगा में स्नान, दान, तर्पण से दस पापों का नाश होता हैं | इसलिए इसे दशहरा कहते हैं | इस दिन गंगा स्नान काशी के दशाश्वमेध घाट पर विशेष महत्वपूर्ण हैं |गंगा स्नान से व्यक्ति के सारे पापों का नाश हो जाता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है |
प्राचीन काल में अयोध्या में सगर नाम के राजा राज्य करते थे | उनकी केशनी तथा सुमति नामक दो रानियाँ थी | केशिनी से अंशुमान नामक पुत्र हुआ तथा सुमति के साठ हजार पुत्र थे |एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया |यज्ञ की पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा | इंद्र यज्ञ को भंग करने हेतु घोड़े को चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध आये |राजा ने यज्ञ के घोड़े को खोजने के लिए अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा |
घोड़े को खोजते-खोजते वे कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो उन्होंने यज्ञ के घोड़े को वहाँ बंधा पाया | उन्होंने चोर-चोर कहकर पुकारना शुरू कर दिया |कपिल मुनि की समाधि टूट गई | तथा राजा के सारे पुत्र कपिल मुनि की क्रोधागिन में जल कर भस्म हो गये | अंशुमान पिता की आज्ञा पाकर अपने भाइयों खोजता हुआ जब मुनि के आश्रम में पहुंचा तो महात्मा गरुड़ ने उसके भाइयों के भस्म होने का सारा वृतान्त कह सुनाया | गरुड़ जी ने अंशुमान को यह भी बाताया कि यदि इनकी मुक्ति चाहते हो तो गंगा जी को स्वर्ग से धारती पर लाना होगा | इस समय अश्व को ले जा कर अपने पिता के यज्ञ को पूर्ण कराओ | इसके बाद गंगा को पृथ्वी पर लाने का कार्य करना | अंशुमान ने घोड़े सहित यज्ञ मंडप में पहुँच कर राजा सगर से सब वृतान्त कह सुनाया |
महाराज सगर की मृत्यु के बाद अंशुमान ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिए तप किया परन्तु वह असफल रहे | इसके बाद उनके पुत्र दिलीप ने भी तपस्या की परन्तु वह भी असफल रहे | अंत में दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की |
तपस्या करते-करते कई वर्ष बीत गये , तब ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए तथा गंगा जी को पृथ्वी लोक पर ले जाने का वरदान दिया |अब समस्या यह थी कि ब्रह्मा जी के कमंडल से छूटने के बाद गंगा के वेग को पृथ्वी पर कौन संभालेगा | ब्रह्मा जी ने बताया कि भू लोक में भगवान शंकर के अतिरिक्त किसी में यह शक्ति नहीं जो गंगा के वेग को सम्भाल सके | इस लिए उचित है कि गंगा का वेग सँभालने के लिए भगवान शिव से अनुग्रह किया जाये |
उधर महाराज भगीरथ एक अंगूठे पर खड़े होकर भगवान शंकर की आराधना करने लगे | उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हो कर शिव जी गंगा को अपनी जटाओं में सँभालने के लिए तैयार हो गए | गंगा जी जब देव लोक से पृथ्वी की ओर बढी तो शिव जी ने गंगा जी की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया | कई वर्षो तक गंगा जी को जटाओं से बाहर निकालने का रास्ता न मिल सका | भगीरथ के पुन: अनुनय-विनय करने पर शिव जी गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त करने के लिए तैयार हुए | इस प्रकार शिव की जटाओं से छूट कर गंगा जी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करते हुए मैदान की ओर बढ़ी |जिस रस्ते से गंगा जी जा रही थी उसी मार्ग में ऋषि जन्हु का आश्रम था | तपस्या में विघ्न समझ कर वे गंगा जी को पी गए | भगीरथ के प्रार्थना करने पर ऋषि जन्हु ने पुन: अपनी जांघ से गंगा को निकाला | तभी से गंगा जन्हु पुत्री जान्हवी कहलाई |
इस प्रकार अनेक स्थलों को पार करती हुई जान्हवी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुँच कर सगर के साठ हज़ार पुत्रों के भस्म अवशेषों को तार कर मुक्त किया | उसी समय ब्रम्हा जी ने प्रकट हो कर भगीरथ के कठिन तप तथा सगर के साठ हज़ार पुत्रों के अमर होने का वर दिया तथा घोषित किया कि तुम्हारे नाम पर गंगा जी का नाम भागीरथी होगा | अब तुम जा कर अयोध्या का राज संभालो | ऐसा कह कर ब्रह्मा जी अंतर्ध्यान हो गए |