भारत ही नहीं विदेशों में भी होली का त्योहार हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। होलिका दहन जिसे छोटी होली भी कहा जाता है, कई स्थानों पर इसे होलिका दीपक भी कहा जाता है। इसे होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। होली के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि होली शब्द हिरण्याकश्यप की बहन होलिका के नाम पर पड़ा है। कहा जाता है कि होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे पहन पर आग में नहीं जलते थे। होलिका ने अपने भाई की बात मानते हुए हिरण्याकश्यप के बेटे प्रह्लाद को लेकर होलिका चिता पर बैठ गई थी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होली जल कर भस्म हो गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। तभी से इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इसके साथ ही इस त्योहार को प्रेम के त्योहार के रूप में लोग मनाते हैं। लोगों का मानना है कि इस दिन लोग आपस के मन मुटावों को भूलकर आपस में प्रेम भी भावना से आपस में मिलते हैं और अपने पुराने गिले शिकवों को भुला देते हैं।
होली पूजन की विधि
होलिका में आग लगाने से पूर्व होलिका में विधिवत पूजन करने की परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार होलिका में आग लगाने से पहले बाकायदा एक पुरोहित मंत्रों का उच्चारण कर इस विधि को पूरा करवाता है। परंपरा के अनुसार इस पूजा को करने के लिए जातक को पूजा करते वक्त पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठाया जाता है। होलिका पूजन करने के लिए गोबर से बनी होलिका और प्रहलाद की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच या सात प्रकार के अनाज, नई गेहूं या अन्य फसलों की बालियां और साथ में एक लोटा जल रखना अनिवार्य होता है। साथ ही मीठे पकवान, मिठाईयां, फल आदि भी चढ़ाए जाते हैं।
पूजा सामग्री के साथ होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है। होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के समय चार मालाएं अलग से रख ली जाती हैं। इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के लिये, तीसरी शीतला माता, और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है। इसके पश्चात पूरी श्रद्धा से होली के चारों और परिक्रगमा करते हुए सूत के धागे को लपेटा जाता है। होलिका की परिक्रगमा तीन या सात बार की जाती है। इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक एक कर होलिका को अर्पित किया जाता है। फिर अग्नि प्रज्वलित करने से पूर्व जल से अर्घ्य दिया जाता है। होलिका दहन के समय मौजूद सभी पुरूषों को रोली का तिलक लगाया जाता है। कहते हैं, होलिका दहन के बाद जली हुई राख को अगले दिन प्रात: काल घर में लाना शुभ रहता है। अनेक स्थानों पर होलिका की भस्म का शरीर पर लेप भी किया जाता है।
वही दूसरी तरफ होलिका दहन से पहले महिलाएं एक लोटा जल, चावल, धूपबत्ती, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल और नारियल से होलिका का पूजन करती हैं। महिलाएं होलिका के चारों ओर कच्चे सूत को सात परिक्रमा करते हुए लपेटती हैं। इसके बाद लोटे का शुद्ध पानी और अन्य पूजन की सभी चीजें एक-एक करके होलिका की पवित्र अग्नि में डालती हैं। कई जगहों पर महिलाएं होलिका दहन के मौके पर गाने भी गाती हैं। होलिका दहन के अगले दिन लोग रंगों से होली खेलते हैं।
नारद पुराण के अनुसार होलिका दहन के अगले दिन (रंग वाली होली के दिन) प्रात: काल उठकर आवश्यक नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं के लिए तर्पण-पूजन करना चाहिए। साथ ही सभी दोषों की शांति के लिए होलिका की विभूति की वंदना कर उसे अपने शरीर में लगाना चाहिए। घर के आंगन को गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर उसमें पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से आयु की वृद्धि, आरोग्य की प्राप्ति तथा समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है।
होलाष्टक
होलिका दहन से आठ दिन पूर्व ‘होलाष्टक’ लग जाता है इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता. पूजा पाठ या शांति अनुष्ठान आप इस समय करा सकते हैं परन्तु कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह , ग्रह प्रवेश , मुंडन आदि वर्जित हैं. यहां तक कि अंतिम संस्कार के लिये भी शांति पूजन करना आवश्यक होता है।
पं धीरेन्द्र नाथ दीक्षित
Astrotips Team