प्राचीन समय में राजा इन्द्रसेन माहिष्मती नगरी में राज्य करते थे. उनके माता पिता दिवंगत हो चुके थे. अकस्मात एक दिन उन्होंने स्वप्न देखा कि उनके माता पिता यमलोक में कष्ट भोग रहे हैं. निद्राभंग होने पर वह चिंतित हुए कि किस प्रकार इस यातना से पितरों को मुक्त किया जाये. इस विषय पर राजा ने मंत्री से विचार विमर्श किया. मंत्री ने रजा इन्द्रसेन से विद्वानों को बुलाकर पूछने की स्वीकृति मांगी. राजा ने भी हामी भर दी.
सभी ब्राह्मणों के उपस्थित होने पर स्वप्न की बात पेश की गयीं. ब्राहम्ण ने कहा “राजन यदि आप सकुटुम्ब इंदिरा एकादशी व्रत करें तो आपके पितरों की मुक्ति हो जाएगी”. उस दिन आप शालिग्राम की पूजा , तुलसी आदि चढ़ाकर 11 ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा और आशीर्वाद लें. इससे आपके माता पिता स्वयं ही स्वर्ग चले जायेंगे. आप रात्रि को मूर्ती के पास ही सोना . राजा ने ऐसा ही किया. जब राजा मंदिर में सो रहे थे तभी भगवान् ने उन्हें दर्शन दिए और बोले” हे राजा व्रत के प्रभाव से तुम्हारे माता पिता स्वर्ग को पहुँच गए हैं. रजा इन्द्रसेन भी इस व्रत के प्रभाव से इस लोक में सुख भोग कर अंत में स्वर्ग को गए.