एक समय स्वर्ग के राजा इंद्र अपनी नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे . गंधर्व मधुर गान गा रहे थे. उन गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती भी थी. साथ ही चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी वहीँ उपस्थित थे।
पुष्पवती बहुत ही सुंदर कन्या थी . वह माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई उसने अपने रूप लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में कर लिया। ।जब वह इंद्रा देव के लिए गायन करने लगे तो आपसी मोह के कारण उनके स्वर लड़खड़ा गये.
इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया। इंद्र ने कहा- हे मूर्खों! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो।
इंद्र का ऐसा शाप सुनकर वे अत्यंत दु:खी हुए और हिमालय पर्वत पर दु:खपूर्वक अपना जीवन पिशाचों की तरह व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था ओर न ही उनको निद्रा सुख प्राप्त था.
पिशाच योनी के दुःख भोगते हुए वेह अक्सर सोचा करते थे कि पिछले जन्म में ऐसा कौन सा पाप उनसे हो गया था जिसके कारण उनको इतना कष्ट सहना पड़ रहा है.
दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई। उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया। केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे। उस रात को अत्यंत ठंड थी, इस कारण उनको निद्रा भी नहीं आई।
जया एकादशी के उपवास और रात्रि के जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई। अत्यंत सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। उस समय आकाश में देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे। स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र इनको पहले रूप में देखकर अत्यंत आश्चर्यचकित हुए और पूछने लगे कि तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया.
माल्यवान बोले कि हे देवेन्द्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है। तब इंद्र बोले कि हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अत: आप धन्य है। अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो।