भगवान कृष्ण द्वारका पुरी में निवास करते थे, उस समय एक ब्राह्मण भी द्वारका में निवास करता था . उसके सात पुत्र बचपन में ही मर चुके थे उसे मृतवत्सा दोष लगा था . अपनी इस दशा से वो ब्राह्मण बहुत दु:खी रहता था . एक दिन ब्राह्मण भगवान कृष्ण के पास गया और कहने लगा –हे भगवन ! आपके राज्य में आपकी कृपा से मेरे सात पुत्र हुए परन्तु जीवित कोई नही रहा, क्या कारण हैं ? यदि आप अपने राज्य में किसी को दु:खी नही देखना चाहते तो कृपया कोई उपाय बताइए .
तब भगवान कृष्ण बोले –हे ब्राह्मण ! सुनो इस बार तुम्हारे जो पुत्र होगा उसकी उम्र तीन वर्ष की हैं . इसकी उम्र बढ़ाने के लिए तुम सूर्य नारायण की पूजा वाले पुत्रजीवी व्रत को धारण करो . तुम्हारी पुत्र की आयु बढ़ेगी . ब्राह्मण ने वैसा ही किया . जब वह सपरिवार हाथ जोड़ कर विनती कर रहा था-
“सूर्यदेव विनती सुनो , पाऊ सुख अपार | उम्र बढाओ पुत्र की कहता बारम्बार ||”
इतना सुनते ही सूर्य का रथ वहाँ रुक गया . ब्राह्मण की विनती से प्रसन्न हो कर सूर्य ने अपने गले से एक माला ब्राह्मण पुत्र के गले में डाल दी और आगे चले गए . थोड़ी ही देर में यमराज उस ब्राह्मण पुत्र के प्राण लेने आये . यमराज को देखा कर ब्राह्मण व उसकी पत्नी दोनों कृष्ण को झूठा कहने लगे . भगवान कृष्ण अपना अनादर जान कर तुरंत आ गए और बोले इस माला को यमराज के ऊपर डाल दो . इतना सुनते ही ब्राह्मण उस माला को उठाने लगा , यह देखकर यमराज डर से भाग गए परन्तु यमराज की छाया वहीँ रह गयी. ब्राह्मण ने उस फूल की माला को छाया के ऊपर फेंक दिया , जिसके फलस्वरूप वह छाया शनि के रूप में आकर भगवान कृष्ण की प्रार्थना करने लगी . भगवान कृष्ण को उस पर दया आ गई उन्होंने उस पर दया कर उसे पीपल के वृक्ष पर रहने के लिए कहा .तब से शनि की छाया पीपल के वृक्ष पर निवास करने लगी इस प्रकार भगवान कृष्ण ने जीवितपुत्रिका व्रत के द्वारा ब्राह्मण के पुत्र की उम्र बढ़ा दी . इस व्रत को श्रद्दापूर्वक करने वाले मृतवत्सा दोष से बचा जा सकता है.