प्राचीन काल में किसी गांव में एक ठाकुर जी निवास करते थे. स्वभाव से क्रोधी होने के कारण किसी से भी झगडा कर बैठते थे. एक दिन किसी बात पर ठाकुर जी का विवाद एक ब्राह्मण से हो गया. बात इतनी बड गयी कि क्रोध में आकर ठाकुर जी के हाथों ब्राहमण की हत्या हो गई.
जब ठाकुर का क्रोध शांत हुआ तो उसने अपने पाप को स्वीकारा और बहुत पछताया परन्तु अब तो ब्राहमण मर चुका था. ठाकुर ने ब्राहमण की क्रिया करने कि इच्छा प्रकट की तो पंडितों ने माना कर दिया और उसे ब्रह्म हत्या का दोषी माना गया. परिणामस्वरूप ब्राह्मणों ने भोजन करने से इंकार कर दिया. तब उन्होने एक मुनि से निवेदन किया कि हे भगवान, मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है. इस पर मुनि ने उसे कामिका एकाद्शी व्रत करने की प्रेरणा दी. ठाकुर ने वैसा ही किया जैसा मुनि ने उसे करने को कहा था. जब रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास जब वह शयन कर रहा था. तभी उसे स्वपन में प्रभु दर्शन देते हैं और उसके पापों को दूर करके उसे क्षमा दान देते हैं.