हिन्दू धर्म के अनुसार नवरात्रों में कन्या पूजन का विशेष महत्व है. माँ भगवती के भक्त अष्टमी या नवमी को कन्याओं की विशेष पूजा करते हैं . नौ कुंवारी कन्याओं को सम्मानित ढंग से बुलाकर उनका पैर अपने हाथो से धो-पोछ कर आसन पर बैठा कर भोजन करा सब को दक्षिणा और भेंट देते हैं.
श्रीमद देवीभागवत के अनुसार कन्या पूजन के भी कुछ नियम हैं जिनको हमें पालन करना चाहिए, जैसे एक वर्ष की कन्या को नही बुलाना चाहिए, क्योकि वह कन्या गंध भोग आदि पदार्थो के स्वाद से बिलकुल अनभिज्ञ रहती हैं .
‘कुमारी’ कन्या वह कहलाती है जो दो वर्ष की हो चुकी हो, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी , पांच वर्ष की रोहिणी, छ:वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्षकी शाम्भवी, नौ वर्षकी दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं .
इससे उपर की अवस्थावाली कन्या का पूजन नही करना चाहिए ; कुमारियो की विधिवत पूजा करनी चाहिए . फिर स्वयं प्रसाद ग्रहण कर अपने व्रत को पूर्ण कर ब्राह्मण को नौवों दिन की दक्षिणा दे पैर छू विदा करना चाहिए .
कुमारी कन्यायों के पूजन से प्राप्त होने वाले लाभ इस तरह से हैं .
“कुमारी” नाम की कन्या जो दो वर्ष की होती हैं पूजित हो कर दुःख तथा दरिद्रता का नाश ,शत्रुओं का क्षय और धन, आयु की वृद्धि करती हैं .
“त्रिमूर्ति” नाम की कन्या का पूजन करने से धर्म-अर्थ काम की पूर्ति होती हैं पुत्र- पौत्र आदि की वृद्धि होती है .
“कल्याणी” नाम की कन्या का नित्य पूजन करने से विद्या, विजय, सुख-समृद्धि प्राप्त होती हैं.
“रोहणी” नाम की कन्या के पूजन रोगनाश हो जाता हैं
“कालिका” नाम की कन्या के पूजन से शत्रुओं का नाश होता हैं
“चण्डिका” नाम की कन्या के पूजन से धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं
“शाम्भवी” नाम की कन्या के पूजन से सम्मोहन, दुःख-दरिद्रता का नाश व किसी भी प्रकार के युद्ध (संग्राम) में विजय प्राप्त होती हैं .
“दुर्गा” नाम की कन्या के पूजन से क्रूर शत्रु का नाश, उग्र कर्म की साधना व पर-लोक में सुख पाने के लिए की जाती हैं
सुभद्रा– मनुष्य को अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए “सुभद्रा”की पूजा करनी चाहिए
मार्कण्डेय-पुराण के अनुसार माँ दुर्गा के नौ रूप है .(श्लोक के रूप में)
प्रथमं शैलपुत्री च द्दितियं ब्रह्मचारिणी | तृतीयं चन्द्रघण्टेति, कुष्मंडेति चतुर्थकम ||
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च | सप्तं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टकम् ||
नवं सिद्दिदात्री च नव दुर्गा प्रकीर्तिता: || (तंत्रेक्तं देवी कवच)
पहला दिन शैलपुत्री, दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरा दिन चन्द्रघंटा, चौथे दिन कुष्मांडा, पाचवें दिन स्कन्दमाता छठे दिन कात्यायनी, सातवे दिन कालरात्रि , आठवे दिन महागौरी, नौवे दिन सिद्धिदात्री इन नौ रूपों में अलग-अलग दिनों में पूजा विधि-विधान से होती है .प्रत्येक भक्तों को माँ के इन नवरूपों से परिचित होना चाहिए .
जय माता दी !
राकेश कुमार (Team Astrotips)
नवरात्रों में किसी भी प्रकार के अनुष्ठान और पूजा का महत्व और परिणाम कई गुना अधिक बढ़ जाता है . नवरात्र के दौरान आप माँ भगवती के पूजन और दुर्गा सप्तसती के पाठ के अलावा निम्नलिखित ज्योतिषीय उपचार भी करा सकते है
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