ग्रहों का उपचार हम योग से भी सरलता से कर सकते है। योगशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र का सही से उपयोग करके मनुष्य सकारात्मक और रोग मुक्त हो सकता है। दोनों शास्रों में हाथो का प्रयोग लगभग एक लक्ष्य के लिए किया जाता है।
ग्रहों के उपचार मे रत्नों का और योग में मुद्राएं का बहुत महत्व है। जन्मकुंडली से रोग का विचार लग्नेश, द्वितीयेश, षष्ठेश, सप्टमेश, आष्ठमेश के स्वामी ग्रह, उनमें स्थित ग्रहो से, गंडमूल नक्षत्रों से भी किया जाता है। शनि की साढ़ेसाती में मनुष्य तनाव ग्रस्त, हर काम को जल्दी करने की कोशिश मे बेचैन रहता है। ऐसी स्थिति मे योग साधना रामबाण उपाय है।
केतु से सम्बन्धित रोग और यौगिक उपाय
कुत्तों का काटना, चर्म रोग, पेशाब की बीमारी,संतान उत्पति में रुकावट, सिर के बाल झड़ जाते हैं, शरीर की नसों में कमजोरी आ जाती है, कान खराब हो जाता है या सुनने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है, कान, रीढ़, घुटने, लिंग, जोड़ आदि में समस्या उत्पन्न हो जाती है, स्वप्न दोष, मधुमेह, रात में सही नींद ना आना।
निम्लिखित कुछ सरल उपाय दिए गए है जो की हर उम्र का व्यक्ति कर सकता है।
योग का और ज्योतिष का एक गहरा सम्बन्ध मानव शरीर के पंचतत्वों और त्रिदोष से जुड़ा है। जिनका सही अनुपात नही होने से रोग और जीवन में समस्या बढ़ती है इसलिए योग नित्य करना चाहिए। रोज किसी भी समय आप शांत चित्त होकर गहरी श्वास के साथ 10 से 15 मिनट अपने रोग से संबंधित मुद्रा और चक्र पर ग्रह सम्बंधित मंत्र के साथ ध्यान करें।
दिव्याकान्ति लोकनार
AstroTips Team