माँ लक्ष्मी की साधना के विशेष नियम
माँ लक्ष्मी कहाँ नहीं करती निवास
साधना में नियमो का विशेष महत्व है | किसी भी इष्टदेव को प्रसन्न करने के लिए प्रतिबन्ध और नियमो का पालन अति आवश्यक है | माँ लक्ष्मी की पूजा में अनेक प्रकार के नियम , प्रतिबन्ध , सिद्धान्त और निषेध बनाये गए है | लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए या विशेष उद्देश्य की प्राप्ति हेतु नियमो का पालन आवश्यक होता है | माँ लक्ष्मी जी की साधना से पहले मुहूर्त को विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए | इसके अलावा माला , आसान , समय , मूर्ति , स्थान , जप-मन्त्र , सामग्री , हवन और यंत्र-रचना का भी विशेष महत्त्व है | अन्य देवी देवताओं के समान माँ लक्ष्मी की कृपा के लिए भी भाव या श्रद्धा का होना अति आवश्यक है | श्रद्धा और नियमो का पालन कर साधना करने से साधक को लाभ अवश्य होता है |
माँ लक्ष्मी साधना के लिए तिथि , दिन , नक्षत्र , आसान , माला , पुष्प , चन्दन , मंत्र और हवन के बारे में जानकारी :
तिथि : नवरात्र साल में दो बार आते है एक चैत्र शुक्ल पक्ष में और दूसरे अश्विन ( कुआर ) में | माँ शक्ति के रूप की साधना के लिए यह समय सर्वोत्तम है | 2, 3, 4, 5 , 6, 7, 8, 9, 10, 13 – ये दस तिथियां लक्ष्मी पूजन के लिए शुभ तथा अनुकूल मानी गयी है | किसी भी प्रकार की साधना चाहे शांति प्राप्ति के लिए हो या पुष्टि प्राप्ति के लिए इन तिथियों में करना लाभप्रद बताया गया है |
वार : लक्ष्मी पूजा में दिन का भी विशेष ध्यान रखा जाता है | पूजा यदि सोमवार , बुधवार , गुरूवार या शुक्रवार को की जाये तो बेहद प्रभावशाली होती है | इसमें शुक्रवार का दिन अधिक श्रेयस्कर है | हो सके तो पूजा शुक्रवार को ही आरम्भ करे |
मास : लक्ष्मी-साधना के लिए वैशाख और आश्विन मास को सर्वाधिक उत्तम मन गया है | सभी मास साधना के लिए अनुकूल नहीं होते अतः इसका विशेष ध्यान रखे | किन्तु विद्वानों के अनुसार किसी भी महीने में तिथि , नक्षत्र और दिन की अनुकूलता देखकर लक्ष्मीजी की आराधना की जा सकती है |
नक्षत्र : किसी भी शुभ कार्य में नक्षत्र का विशेष प्रभाव पड़ता है | लक्ष्मीजी की साधना के समय हस्त , पूर्वा-फाल्गुनी और पुनर्वसु में से कोई भी नक्षत्र होना चाहिए | ये सभी श्रेष्ठ माने गए है |
स्थान : लक्ष्मी पूजा में स्थान का विशेष धयान रखना चाहिए | घर का कोई एकांत पवित्र स्थल सबसे अधिक फलदायक माना गया है | इसके अलावा देव-स्थान , गुफा , मंदिर , पर्वत , वन , या कोई तपो-भूमि भी साधना के लिए शुभ मानी गयी है |
हवन : हवन का साधना में विशेष स्थान है | इसके बिना पूजा अधूरी रह जाती है | इसलिए साधना में हवन करना आवश्यक है | लक्ष्मी पूजा में साधक किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति हेतु साधना करता है अतः हवन सामग्री में घी और दही का मिश्रण सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस मिश्रण की आहुति देने से साधक की दरित्रता दूर होती है | गुग्ल की आहुति का भी विशेष विधान है | बाजार में मिलने वाली हवन सामग्री में घी और शर्करा मिला कर भी हवन किया जा सकता है | इससे भी लक्ष्मी माँ प्रसन्न होती है |
चन्दन : लक्ष्मीजी की पूजा में मूर्ति या चित्र स्थापित कर उसपर चन्दन अर्पित करना चाहिए | लक्ष्मीजी को सफ़ेद या केसर चन्दन नहीं लगाना चाहिए | सिन्दूर लगाया जा सकता है | साधक को स्वयं भी तिलक लगाना चाहिए | लक्ष्मीजी को लगाए गए चन्दन का शेष साधक स्वयं अपने माथे पर लगा ले |
पुष्प : पुष्प का भी लक्ष्मी साधना में विशेष स्थान है | पुष्प का वर्गीकरण गंध , वर्ण , रूचि और इष्टदेव के अनुसार किया गया है | सभी पुष्प साधना के लिए उपयुक्त नहीं होते | लक्ष्मीजी पूजा में कमल पुष्प सर्वोत्तम है | लक्ष्मीजी को कमल का पुष्प अत्यंत प्रिय है | अतः इससे पूजा करने पर माँ की असीम कृपा प्राप्त होती है | कमल का पुष्प सुंदरता , समृद्धि और शुभ का प्रतीक है | यह अत्यंत ही अलौकिक पुष्प है | लक्ष्मीजी को कमल पुष्प के अलावा सफ़ेद , लाल या पीले पुष्प भी अर्पित किये जा सकता है |
इसके अलावा कुछ और विशेष बातें है जिन पर भी पूजा के दौरान ध्यान देना चाहिए :
- धूपबत्ती को देवी देवता के बांयी ओर रखना चाहिए |
- दीपक देवता के दांयी ओर होना चाहिए |
- लक्ष्मीजी की साधना में मन्त्र-जप करते समय साधक को पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए |
- हवन के समय साधक को पूर्व की ओर मुख करके बैठना चाहिए |
- फूल , गंध आदि हमेशा मूर्ति के सामने रखने चाहिए |
Astrotips Team