वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। जिस प्रकार कार्तिक एवं वैशाख मास उत्तम माना गया है उसी प्रकार वैशाख मास की यह एकादशी भी उत्तम मानी गयी है. मान्यताओं के अनुसार हमारे द्वारा किये गये पाप कर्म के कारण ही हम अपने जीवन में मोह बंधन में बंध जाते हैं. मोहिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य अपने सभी मोह बन्धनों से मुक्त हो जाता है एवं उसके समस्त पापों का नाश होता है, जिसके कारण वह मृत्यु के उपरान्त नरक की यातनाओ से छुटकारा पाकर ईश्वर की शरण में चला जाता है.
मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता है कि समुद्र मंथन के पश्चात अमृत पाने के लिए दानवों एवं देवताओं में विवाद कि स्तिथि पैदा हो गयी थी. दानवों को हावी जानकार भगवान् विष्णु ने अति सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर दानवों को मोहित किया और उनसे कलश लेकर देवताओं को सारा अमृत पीला दिया था. अमृत पीकर देवता अमर हो गये .
जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे उस दिन एकादशी तिथि थी। भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है।
व्रत विधि : पुराणों के अनुसार दशमके दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन को शांत एवं स्थिर रखें. किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लायें. परनिंदा से बचें. प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे तथा स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं.
भगवान् विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें। व्रत के दिन अन्न वर्जित है. निराहार रहें और शाम में पूजा के बाद चाहें तो फल ग्रहण कर सकते है. यदि आप किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए।
एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें। एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
सागार: इस दिन गौ मूत्र का सागार लेना चाहिए.