सावन मास में शुक्ल-पक्ष की पंचमी तिथि नागों को अत्यन्त प्रिय हैं . भविष्यपुराण के अनुसार सावन मास में शुक्ल-पक्ष की पंचमी तिथि पर नागलोक में विशिष्ट उत्सव मनाया जाता है . आज पंचमी तिथि के दिन जो व्यक्ति नागों को दूध से स्नान कराता है, उसके कुल में वासुकि, तक्षक, कालिय, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक, तथा धनञ्जय ये सभी बड़े-बड़े नाग अभय-दान देते हैं, व उनके कुल में सर्प का भय नहीं रहता . इसे हम सब नागपंचमी पर्व के रूप में जानते व मानते हैं .
एक बार नागमाता ने उनके स्वयं के आदेश की अवहेलना से कुपित (क्रोधित) हो नागों (सर्प) को शाप दे दिया था . नागमाता के शाप से नागलोक जलने लग गए थे . इसलिए उस दाह(जलन) की व्यथा (बेचैनी) को दूर करने के लिए पंचमी तिथि को गाय के दूध से नागों को आज भी स्नान कराया जाता हैं ऐसा मान जाता है कि दूध से स्नान कराने से नागलोको की जलन कम होकर समाप्त हो जाती हैं तथा सर्प भय भी नहीं रहता है.
सुमन्तु मुनि ने कहा—जब राक्षसों और देवताओं ने मिलकर समुद्र-मंथन किया था .उस समय समुद्र से अतिशय श्र्वेत उच्चै:श्रवा नाम का एक अश्व निकला, उसे देखकर नागमाता कद्रू ने अपनी सपत्नी(सौत) विनता से कहा कि देखो, यह अश्व श्वेत वर्ण का हैं, परन्तु इसके बाल काले दिख पड़ते हैं तब विनता ने कहा कि न तो यह अश्व सर्वश्वेत हैं, न काला है और न लाल यह सुनकर कद्रू ने कहा –‘मेरे साथ शर्त करो की यदि मैं इस अश्व के बालों को कृष्णवर्ण दिखा दूं तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाउगी’.
विनता ने यह शर्त स्वीकार कर ली दोनों क्रोध करती हुई अपने-अपने स्थान को चली गई . कद्रू ने अपने पुत्र नागों को बुलाकर उन्हें सारा वृतान्त सुना दिया और कहा ‘पुत्रों ! तुम अश्व के बल के समान सूक्ष्म होकर उच्चै:श्रवा के शारीर में लिपट जाओ, जिससे ये कृष्ण वर्ण का दिखाई देने लगे और मैं जीतकर विनता को अपनी दासी बना सकूँ .नाग पुत्रों ने बोला माँ ये छल होगा, छल से जीतना बहुत बड़ा अधर्म हैं’ .पुत्रों ऐसी बात सुन कर नागमाता कद्रू कुपित(क्रोधित) हो गई . क्रोधित होकर कहा- तुम सब मेरी आज्ञा नही मानते हो,इसलिए मैं तुम्हे शाप देती हूँ कि ‘पांडवों के वंश में उत्पन्न राजा जनमेजय जब सर्प-सत्र करेगें , तब उस यज्ञ में तुम सभी अग्नि में जल जाओगें’ .
इतना कह कर कद्रू चुप होगई . नाग-गण माता का शाप सुन कर बहुत घबराये और वासुकि को साथ ले ब्रह्मा जी के पास पहुँचें तथा ब्रह्मा जी को अपना सारा वृतान्त सुनाया . इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि वासुके ! चिन्ता मत करो मेरी बात सुनो –“यायावर-वंश”में बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारू नामक ब्राह्मण उत्पन्न होगा . उसके साथ तुम अपनी जरत्कारू नामवाली बहिन का विवाह कर देना और वह जो भी कहे, उसका वचन स्वीकार करना . उसे आस्तिक नाम का विख्यात पुत्र उत्पन्न होगा, वह जनमेजय के सर्प-यज्ञ को रोकेगा और तुम लोगों की रक्षा करेगा . ब्रह्मा जी के इस वचन को सुन कर नागराज वासुकि अत्यधिक प्रसन्न हो, उन्हें प्रणाम कर अपने लोक में आ गये .
इस यज्ञ को राजा जनमेजय ने किया था . यही बात श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताई –आज से सौ वर्ष बाद (जो हजारो वर्ष पहले घट चुकी है) सर्प–यज्ञ होगा, जिसमें बड़े-बड़े विषधर और दुष्ट नाग नष्ट हो जायेगे . करोड़ों नाग जब अग्नि में दग्ध(जलने) होने लगेगें, तब आस्तिक नामक ब्राह्मण सर्पयज्ञ रोककर नागों की रक्षा करेगा . ब्रह्मा जी ने पंचमी के दिन वर दिया था और आस्तिक मुनि ने पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी .इसलिए पंचमी तिथि नागों को बहुत प्रिय हैं .
इसलिए पंचमी तिथि को नागो की पूजा की जाती है तथा यह प्रार्थना की जाती है कि जो नाग पृथ्वी में, आकाश में, स्वर्ग में, सूर्य की किरणों में, सरोवरों में, वापी में, कूप में, तालाब आदि में रहते हैं , वे सब हम पर प्रसन्न हो, और उन्हें गाय के दूध से स्नान कराकर बारम्बार नमस्कार किया जाता है.