ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है.सभी चौबीस एकादशी व्रत में निर्जला एकादशी का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि इस एकादशी व्रत में अन्न के साथ साथ जल भी ग्रहण नही किया जाता है इसलिए इस एकादशी का नाम निर्जला एकादशी पडा.
फल : उपवास के कठोर नियमों को देखते हुए निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन माना गया है. पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत नियम पूर्वक और श्रद्धा पूर्वक करता है उसे सभी एकादशियों का फल मिलता है. जो सभी एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए .
सागार: इस दिन कैरी का सागार लेना चाहिए
व्रत विधि: पुराणों के अनुसार दशमी तिथि को शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन को शांत एवं स्थिर रखें. किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लायें. परनिंदा से बचें.
प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे तथा स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं. भगवान् विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें। व्रत के दिन अन्न वर्जित है. निराहार रहें और शाम में पूजा के बाद चाहें तो फल ग्रहण कर सकते है. यदि आप किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए।
एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें। एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।