निर्जला एकादशी से सम्बंधित पौराणिक कथा अनुसार इस एकादशी को भीम एकादशी, पांडव एकादशी या भीमसेन एकादशी भी कहा गया है. पाँचों पांडव भाईओं में भीमसेन खाने पीने के बेहद शौक़ीन थे. इसी कारण उन्हें भिन्न भिन्न प्रकार के व्यंजन परोसे जाते थे.
एकादशी पड़ने पर सभी भाई और द्रौपदी बड़ी ही श्रद्धा पूर्वक व्रत करते थे ,परन्तु अपनी भूख पर संयम न रखने के कारण भीम व्रत करने में सदैव असमर्थ रहते थे. इस बात का उन्हें बहुत दुःख था. भीम अक्सर सोचा करते थे कि व्रत न करने से वह भगवान् विष्णु का अपमान कर रहे हैं. एक दिन अपने मन की इसी दुविधा को लेकर भीम महर्षि व्यास की शरण में पहुंचे और सारी बात कह डाली.
महर्षि व्यास ने भीम सेन की चिंता का निवारण करते हुए निर्जला एकादशी का महत्व समझाया. वह बोले कि यदि तुम सारे एकादशी उपवास न रख सको तो केवल निर्जला एकादशी का उपवास श्रद्धा पूर्वक रखो क्योंकि यह उपवास बाकी सारी एकादशियों के तुल्य है. यह जानकार भीमसेन अति प्रसन्न हुए और वह भी निर्जला एकादशी व्रत करने लगे.