प्राचीन काल में मुचकुंद नाम का दानी , धर्मात्मा राजा राज्य करता था. उसे एकादशी व्रत पर पूर्ण विश्वास था, इसलिए वह प्रत्येक एकादशी को व्रत का पालन किया करता था. राजा मुचकुंद ने अपनी प्रजा पर भी यही नियम लागू किया हुआ था. राजा की चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी जो अपने पिता से अधिक ईश्वर में आस्था रखती थी एवं पूर्ण श्रद्धा से व्रत का पालन किया करती थी.
चंद्रभागा जब विवाह योग्य हुई तो उसका विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ. एकादशी के दिन सभी ने व्रत किया . शोभन ने भी व्रत किया, परन्तु अत्यधिक दुर्बलता के कारण भूख से व्याकुल होकर वह मृत्यु को प्राप्त हुआ.
इससे राजा , रानी और उनकी पुत्री चंद्रभागा अत्यंत दुखी हुए. उधर शोभन को एकादशी व्रत के प्रभाव से मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य युक्त एवं शत्रुओं से रहित एक उत्तम देव नगर में आवास मिला. वहां उसकी सेवा सुन्दर अप्सराएं किया करती थी. अचानक एक दिन राजा मुचकुंद मंदराचल पर टहलने पहुंचे तो वहां पर अपने दामाद को देखकर दंग रह गए.
महल पहुंचकर राजा ने सारा वृत्तांत अपनी पुत्री को बताया. यह सुनकर चंद्रभागा भी अपने पति के पास चली गयी तथा दोनों सुखपूर्वक अप्सराओं से सेवित मंदराचल पर्वत पर निवास करने लगे.