संकष्टी चतुर्थी यदि मंगलवार को पड़े तो उसे ‘अंगारकी चतुर्दशी’ के नाम से भी जाना जाता है.
चतुर्थी तिथि आरम्भ : 3 अप्रैल , 4:43 PM
चतुर्थी तिथि समाप्त : 4 अप्रैल , 5:32
व्रत का फल : फाल्गुन गणेश चौथ व्रत करने वाले भक्तों की रक्षा स्वयं भगवन गणेश करते हैं.
पूर्व काल में रंतिदेव के राज्य में धर्मकेतु नाम का ब्राह्मण रहता था, इसकी सुशीला और चंचलता नाम की दो पत्नीयां थी . सुशीला धर्म परायण थी तथा व्रत उधापन किया करती थी .चंचलता कभी कोई न व्रत करती थी और ना श्रृंगारादि करके शारीर को सुन्दर रखती थी . सुशीला को सुन्दर कन्या और चंचलता को पुत्र पैदा हुआ . चंचलता सुशीला से बोली तूने व्रतोपवास में शारीर सुखा दिया और बेटी पैदा की, देख मैं कभी व्रतादि नहीं करती परन्तु फिर भी पुत्र पैदा किया .
अपनी सौत के बचन सुनकर सुशीला बहुत दु:खी हुई और भक्तिपूर्वक गणेश जी की आराधना करने लगी . व्रत से प्रसन्न हो गणेश जी स्वप्न में दर्शन देते हुए बोले –हे सुशीला ! मैं तेरी पूजा से प्रसन्न हूँ तेरी कन्या के मुंह से सदा मोती मुंगे गिरा करेगें तथा सुन्दर विद्दान पुत्र तुझे प्राप्त होगा . कन्या के मुंह से मोती मुंगे निकलने लगे एवं पुत्र भी प्राप्त हो गया .
धर्मकेतु की मृत्यु के बाद चंचलता अपने पुत्र एवं सारा धन लेकर अलग हो गई . सुशीला अपने पुत्र और कन्या का पालन करने लगी और कुछ ही समय में धनवान हो गई . उसकी संपत्ति को देखकर चंचलता जलने लगी और सुशीला की कन्या को कुएं में डाल दिया पर परन्तु गणेश जी की कृपा से कन्या का बल भी बांका नहीं हुआ . कन्या को घर आया देखकर चंचलता सुशीला के पैंरो में गिर पड़ी और बोली बहन ! मुझे तुम क्षमा करो तुम दयालु हो तुमने दोनों कुलों को तार दिया . जिसकी गणेश रक्षा करते हैं मनुष्य उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता .
चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत तिथि 2016 ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी ज्येष्ठ नक्षत्र