" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
Pt Deepak Dubey

वरूथिनी एकादशी कथा/Varuthini Ekadashi Katha

Ekadashi 2024/ एकादशी  2024

प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था जहाँ के राजा का नाम पुण्डरीक था. भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत धनी थे और वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था. एक दूजे के बिना वह दोनों हे नहीं रह पाते थे.

एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग हो गया . जिसके कारण पूरे गाने का  स्वरूप ही  बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। राजा पुण्डरीक ने क्रोधमें आकर ललित को अपनी प्रिय ललिता से विछोह और साथ ही उसे बाकी  का जीवन एक भयानक राक्षस के रूप में व्यतीत करने का  श्राप दे डाला.

पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। लम्बी भुजाएं, डरावना मुख और विशालकाय शरीर देखकर सब उससे दूर भागने लगे. इस प्रकार राक्षस होकर ललित बहुत दुखी हुआ और अपनी प्रिय ललिता से दूर वन की ओर चला गया.

जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत दुःख  हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी।  एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहाँ जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी।

उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले  हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। यह व्रत सभी कार्यों में सिद्धि दिलाता है.  यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी  शांत हो जाएगा।

मुनि के वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से अपने पति की राक्षस योनी से मुक्ति की प्रार्थना की. एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप में आ गया ओर दोनों पति पत्नी पुनः एकसाथ रहने लगे.

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वरूथिनी एकादशी व्रत/Varuthini Ekadashi Vrat

कामदा एकादशी / Kaamda Ekadashi                                                                         


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