यदि जनम कुंडली में शनि और चन्द्रमा की युति किसी भी भाव में हो तो कुंडली में विष्कुम्भ दोष कहलाता है. ज्योतिषीय
दृष्टिकोण से विष्कुम्भ दोष अशुभ माना गया है. चन्द्रमा और शनि की युति जिस भी भाव में हो वेह उस भाव में दोष उत्त्पन्न
क्र देती है. यदि लग्न में स्तिथ हो तो जातक नकारात्मक सोच से ग्रसित होकर अवसाद का शिकार हो सकता है. अष्टम भाव में यह
युति “बलारिष्ट योग” और प्रेत बाधा दर्शाती
है. ऐसी स्तिथि में “वन दुर्गा अनुष्ठान” ही एकमात्र उपाय है.
विषकुम्भ दोष निवारण पूजा में शनि एवं चन्द्रमा का मंत्र जप+ स्तुति और यज्ञ किया जाता है. विषकुम्भ दोष निवारण पूजा
में शुभ महूर्त, दिशा, हवन समिधा का विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि विषकुम्भ दोष के नकारात्मक प्रभावों को अधिक से अधिक
घटाया जा सके.
सभी प्रमुख कर्म काण्ड मेरी देख रेख में संपन्न होते है.
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