" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
Pt Deepak Dubey

पुनर्वसु नक्षत्र/Punarvasu Nakshtra

नक्षत्र देवता: अदिति

नक्षत्र स्वामी: बृहस्पति

poonarvasu

पुनर्वसु नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव 

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति बेहद मिलन सार और दूसरों से प्रेमपूर्वक व्यवहार रखने वाले होते हैं. परन्तु बहुत कम लोग आपके स्नेहपूर्वक व्यवहार को समझ पाते हैं और प्रायः आपके व्यवहार को कायरता से जोड़ देतें हैं. आपके गुप्त शत्रुओं की संख्या अधिक होती है.

आपको अधिक संतान की प्राप्ति भी होती है परन्तु उनका आपस में या आप के साथ  व्यवहार सौहार्दपूर्ण नहीं होता है. सहयोगी , पडोसी या ससुराल पक्ष में आप के प्रति षड़यंत्र बनते रहते हैं. पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातकों को सबसे अधिक भय अपने निकटतम मित्रों से होता है क्योंकि जीवन में कभी न कभी आप अपने मित्रों द्वारा ही  विश्वासघात के शिकार होते हैं.

आप स्वभाव से शांत प्रकृति के व्यक्ति हैं देखने में सुन्दर और सुशील होते हैं. अपने दानी स्वभाव के कारण मित्रों और समाज में अधिक लोकप्रिय होते हैं. आजीवन धन और बल से युक्त रहते हैं . आपको समाज में मान प्रतिष्ठा की कमी नहीं रहती. आप सहनशील  एवं अपनी भाई बहनों से प्रेम करने वाले होते हैं. ईश्वर में पूर्ण आस्था एवं लोक परलोक का विचार सदैव आपके मन में रहता है इसलिए आप सदा ही सात्विक आचरण का समर्थन करते हैं.

स्वभाव संकेत: सुन्दर एवं सात्विक आचरण

रोग संभावना: खांसी, निमोनिया, सुजन, फेफड़ों में दर्द, कान से सम्बंधित रोग.

विशेषताएं :

प्रथम चरण : इस  चरण का स्वामी मंगल हैं. मंगल और बृहस्पति दोनों मित्र हैं. फलस्वरूप ऐसा जातक अपने जीवन में अनेकों सुख भोगता है. लग्नेश बुध की दशा शुभ फल देगी . शनि की दशा में भाग्योदय होगा. बृहस्पति की दशा में गृहस्थ एवं नौकरी का सुख मिलेगा. 

द्वितीय चरण :इस चरण का स्वामी शुक्र हैं,जो दैत्यों के आचार्य हैं. अतः दोनों आचार्यों, बृहस्पति एवं शुक्र से सम्बन्ध रखने वाला जातक विद्वान् होगा. लग्नेश बुध की दशा माध्यम  फल देगी . बृहस्पति की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.  

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध  हैं. जो परस्पर विरोधी हैं. अतः पुनर्वसु नक्षत्र के तृतीय चरण में पैदा होने वाला जातक आजीवन रोगी होगा और कोई न कोई बीमारी उसे जावन भर परेशान करेगी.  बृहस्पति एवं बुध  की दशाएं नष्ट फल  देंगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे  चरण में पैदा होने वाला जातक धन बल से युक्त, कवी ह्रदय, संगीत प्रेमी , कम प्रयत्न से अधिक लाभ कमाने वाला  परन्तु स्वभाव से कामुक होता है. इस नक्षत्र पर मंगल का होना जातक को स्वार्थी बना देता है और गुरु की उपस्तिथि में जातक समाज के सम्मानजनक पदों पर आसीन होता है.

अश्विनी भरणी कृतिका मृगशिरा  रोहिणी आद्रा
पुष्य अश्लेशा मघा  पूर्वाफाल्गुनी उत्तराफाल्गुनी हस्त  चित्रा 
स्वाति विशाखा अनुराधा ज्येष्ठ मूल पूर्वाषाढा उत्तराषाढा
श्रवण धनिष्ठा शतभिषा पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद रेवती  


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