नक्षत्र देवता: वायु
नक्षत्र स्वामी: राहु
स्वाति नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म स्वाति नक्षत्र में हुआ है तो आप एक आकर्षक चेहरे और उससे भी अधिक आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी हैं. आपका शारीर सुडौल एवं भरा हुआ है. इस कारण आप कहीं भी जाएँ भीड़ से अलग ही दिखते हैं. आप जैसा सोचते हैं वैसा करते हैं . दिखावा आपको पसंद नहीं .
आप एक स्वतंत्र आत्मा के स्वामी है जिसको किसी के भी आदेश का पालन करना कतई पसंद नहीं. आप किसी पर भी तब तक मेहरबान रहते हैं जब तक कि सामने वाला आपकी आज़ादी में दखल न दे. जो भी आपकी आजादी को नुक्सान पहुचाएगा वो आपके कोप भाजन का शिकार अवश्य होगा. वास्तविकता तो यह है कि आप या तो किसी के परम मित्र हो सकते हैं या फिर परम शत्रु.
आप स्वभाव से बहुत ही स्वाभिमानी और उच्च विचार धारा के व्यक्ति हैं . न तो आपको किसी की संपत्ति में रूचि है और न ही अपनी संपत्ति में किसी की हिस्सेदारी आपको पसंद है. आपको अपने कार्यों पर किसी की टिप्पणी कतई पसंद नहीं है. यदि आपकी नज़र में सामने वाला दोषी है तो बदला लेने में आप किसी भी हद तक जा सकते हैं . आप अपने कार्यों को पूरे मन लगा कर मेहनत और इमानदारी के साथ करते है. आप अपने जीवन के शरुआती 25 वर्षों में व्यवसायिक रूप से बहुत कठिनाईयां झेलेंगे. परिश्रम के अनुरूप फल प्राप्त नहीं होगा परन्तु 30 वर्ष के उपरान्त आपको अपने किये हुए कार्यों का ब्याज समेत भुगतान मिलेगा. स्वाति नक्षत्र के जातकों के लिए न्यायिक व्यवस्था में कार्य करना सबसे अधिक लाभप्रद है. सैन्य क्षेत्र में आप अधिक तरक्की करते है.
आपका वैवाहिक जीवन बहुत सुखमय नहीं होगा क्योंकि आपसी वैचारिक मतभेदों के कारण घर में शांति नहीं रहेगी फिर भी स्तिथि स्थिर रहेगी और बिगड़ेगी नहीं.
स्वाति नक्षत्र की जातिका कभी न आलस करने वाली होती हैं. दिखने में साधारण शक्ल सूरत किन्तु बुद्धि से चपल एवं किसी भी स्तिथि में अपने मनोरथ पूरे करने वाली होती हैं. इस नक्षत्र में जन्मी जातिका जिद्दी होने के कारण कभी कभी अच्छे बुरे कार्य में भेद नहीं कर पाती है.
स्वभाव संकेत: स्वाति नक्षत्र का जातक अपने स्वभाव से प्रसन्नता देता है.
रोग संभावना : यौन रोग , मूत्र से सम्बंधित रोग
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक चोर प्रवृत्ति का होता है . नक्षत्र स्वामी राहु गुरु को बिगाड़ कर अपना फल देता है अतः जातक चोर प्रवृत्ति का होगा.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. राहु व् शनि दो पाप ग्रहों के प्रभाव में आने से जातक अल्पायु होता है. लग्नेश शुक्र की दशा अच्छी जाएगी. राहु और शनि की मित्रता के कारण दोनों की दशाओं में जातक को स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना होगा .
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. इस नक्षत्र में जन्मे जातक पर शनि और राहु के प्रभाव के कारण वैराग्य आएगा अतः जातक धार्मिक प्रवृत्ति का होगा. राहु और शनि की मित्रता के कारण दोनों की दशाओं में जातक को स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना होगा .
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति राजा समान होता है तथा बहुत अधिक भू संपत्ति का स्वामी होता है. राहु एवं गुरु की दशाएं अशुभ फल देंगी.